Child Phycology
What Is Child Psychology (बाल मनोविज्ञान क्या है)? Child Psychology (बाल मनोविज्ञान) बच्चों के भावनात्मक, संज्ञानात्मक और व्यवहारिक विकास को दर्शाता है । यह बच्चे के परवरिश और शिक्षा का एक अहम पहलू है। मनोविज्ञान के अनुसार, बालक के विकास की प्रक्रिया उसके जन्म से पूर्व गर्भ में ही प्रारम्भ हो जाती है। विकास की इस प्रक्रिया में वह गर्भावस्था, शैशवावस्था, बाल्यावस्था, किशोरावस्था, प्रौढ़ावस्था इत्यादि कई अवस्थाओं से गुजरते हुए परिपक्वता की स्थिति प्राप्त करता है।
बाल मनोविज्ञान, मनोविज्ञान में अपना अहम् स्थान रखा है। यह बच्चे के शरीरिक विकास और मानसिक दृष्टिकोण का, भाषा, बुद्धि, और उसके व्यक्तित्व के अध्ययन का विषय है।
बाल विकास(Child Development) के अध्ययन में प्रायः निम्नलिखित बातों को शामिल किया जा सकता है :
- गर्भावस्था, शैशवावस्था, बाल्यावस्था, किशोरावस्था, प्रौढ़ावस्था इत्यादि अवस्थाओं से गुजरते हुए परिपक्व होने तक बच्चों में कौन-कौन से परिवर्तन होते हैं?
- बच्चों में होने वाले परिवर्तनों का हर उम्र के साथ क्या सम्बन्ध होता है? उम्र के साथ होने वाले परिवर्तनों का क्या स्वरूप होता है?
- बालकों में होने वाले परिवर्तनों की क्या वजह होती हैं?
- बालक में समय-समय पर होने वाले उपरोक्त परिवर्तन उसके व्यवहार को किस प्रकार से प्रभावित करते हैं?
- क्या सभी बालकों में वृद्धि एवं विकास सम्बन्धी परिवर्तनों का स्वरूप एक जैसा अथवा अलग होता है?
- बालकों में पाई जाने वाली व्यक्तिगत विभिन्नताओं के लिए किस प्रकार के आनुवंशिक एवं परिवेशजन्य प्रभाव उत्तरदायी होते हैं?
- बालक में, गर्भ में आने के बाद निरन्तर प्रगति होती रहती है। इस प्रगति का विभिन्न आयु तथा अवस्था विशेष में क्या स्वरूप होता है?
- बालक की रुचियों, आदतों, दृष्टिकोणों, जीवन-मूल्यों, स्वभाव तथा उच्च व्यक्तित्व एवं व्यवहार-गुणों में जन्म के समय से ही जो निरन्तर परिवर्तन आते रहते हैं उनका विभिन्न आयु वर्ग तथा अवस्था विशेष में क्या स्वरूप होता है तथा इस परिवर्तन की प्रक्रिया की क्या प्रकृति होती है?
जेम्स ड्रेवर के अनुसार, बाल मनोविज्ञान कि वह शाखा है जिसमें जन्म से परिपक्वता की स्थिति तक विकसित हो रहे मानव का अध्ययन किया जाता है।
Concept of Child Development ( बाल विकास की अवधारणा )
- बालक का शारीरिक, क्रियात्मक, संज्ञानात्मक, भाषागत, एवं सामाजिक विकास होता है।
- विकास की प्रक्रिया के अन्तर्गत रुचियों, आदतों, दृष्टिकोणों, जीवन-मूल्यों, स्वभाव, व्यक्तित्व, व्यवहार इत्यादि को भी शामिल किया जाता है।
- बाल-विकास का तात्पर्य, बालक के विकास की प्रक्रिया होता है। बालक के विकास की प्रक्रिया उसके जन्म से पूर्व गर्भ में ही प्रारम्भ हो जाती है। विकास की इस प्रक्रिया में वह गर्भावस्था, शैशवावस्था, बाल्यावस्था, किशोरावस्था, प्रौढ़ावस्था इत्यादि कई अवस्थाओं से गुजरते हुए परिपक्वता की स्थिति प्राप्त करता है।
Characteristics of child Development – विकास के अभिलक्षण
बाल विकास का प्रमुख लक्ष्य है, कि बालक का विकास इस तरह हो कि उसमें सामान्य व्यवहार ही दिखाई दें। बाल विकास का यह अध्ययन अभिभावकों को इस बात के लिए प्रेरित करता है कि उनके बालकों का व्यवहार एवं विकास सामान्य होगा तभी वे समाज के लिए उपयोगी हो सकते हैं ।
- बुद्धि या मानसिक योग्यता– बालक के विकास में उसकी जन्मजात बौद्धिक योग्यता का महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। तीव्र बुद्धि के बालकों का विकास भी तीव्र गति से होता है और मन्द बुद्धि के बालकों का विकास मन्द गति से। प्रायः देखा गया है कि मन्द बुद्धि के बालकों का शरीरिक विकास भले ही हो जाये, किन्तु उनके सामाजिक, सांवेगिक, नैतिक, मानसिक विकास की गति बहुत धीमी रहती है।टर्मन ने बालक के चलने और बोलने के बारे में अध्ययन किया। उनके अनुसार कुशाग्र बुद्धि के बालक 13 महीने की उम्र में चलना प्रारम्भ कर देते हैं। सामान्य बुद्धि के बालक 14 महीने की उम्र में, जबकि मूर्ख बालक 22 महीने की उम्र में तथा मूढ़ बालक तीस महीने की उम्र में इसी प्रकार बोलने के सम्बन्ध में कुशाग्र बुद्धि बालक 11 महीने की आयु में बोलने लगते हैं, सामान्य बुद्धि के बालक 16 महीने में, मूर्ख बालक 34 महीने में तथा मूढ़ बालक 51 महीने में बोलते हैं।
- लिंग–भेद– योनि का बालक के विकास में महत्त्वपूर्ण योग होता है। इसका प्रभाव बालक के शारीरिक और मानसिक विकास पर पड़ता है। वैसे जन्म के समय लड़के, लड़कियों से आकार में बड़े होते हैं, किन्तु बाद में उनका विकास अपेक्षाकृत तेजी से होता है। यौन परिपक्वता लड़कियों में शीघ्र आती है और वे अपना पूर्ण आकार लड़कों की अपेक्षा शीघ्र ग्रहण कर लेती हैं। लड़कों का मानसि विकास भी लड़कियों की अपेक्षा कुछ देर से होता है।
- पोषण –बालक के स्वस्थ विकास के लिये पौष्टिक और संतुलित आहार अत्यन्त आवश्यक है। संतुलित आहार का अर्थ है कि बालक का आहार विभिन्न खाद्य पदार्थों का इस प्रकार और इतनी मात्रा में चयन करना है जिससे कि उसमें आवश्यक प्रोटीन, चिकनाई, स्टार्च, कार्बोहाइड्रेट, विटामिन आदि सभी उपयुक्त मात्रा में हों। ये सभी बालक के शरीर और मस्तिष्क के विकास में संतुलित योग देते हैं। पोषक तत्त्वों के अभाव में बालक का संतुलित ढंग से विकास नहीं होता है। दूध, घी, फल, अण्डे आदि पोषक आहार की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण माने जाते हैं।
- सांस्कृतिक प्रभाव –प्रत्येक संस्कृति में विकास के अलग-अलग अवसर होते हैं तथा रीति रिवाज और परम्पराएँ भी भिन्न-भिन्न होती हैं। अतः बालक का विकास इन्हीं के अनुरूप होता है। मीड, वैनेडिक्ट और अन्य कई मानवशास्त्रियों ने आदिम समाजों के जो अध्ययन किये हैं उनसे इस बात पर काफी प्रकाश पड़ता है।